एक छोटे से गाँव में मीरा नाम की एक लड़की रहती थी। मीरा के पिता एक किसान थे और परिवार बहुत साधारण जीवन जीता था। मीरा पढ़ने में बहुत होशियार थी, लेकिन उनके गाँव में सिर्फ पाँचवीं तक ही स्कूल था।
मीरा का सपना था कि वह एक दिन टीचर बने और अपने जैसे गाँव के बच्चों को पढ़ाए। लेकिन गरीबी और संसाधनों की कमी उसके सपनों के रास्ते में दीवार बनकर खड़ी थी।
एक दिन गाँव में एक नई शिक्षिका आईं — नाम था सीमा मैडम। उन्होंने मीरा को पढ़ते देखा और उसकी लगन से बहुत प्रभावित हुईं। उन्होंने मीरा के पिता से बात की और उन्हें समझाया कि अगर मीरा को आगे पढ़ने का मौका मिले, तो वह अपने साथ-साथ पूरे गाँव का भविष्य बदल सकती है।
मीरा के पिता ने मुश्किल से पैसे जुटाए और सीमा मैडम की मदद से मीरा को पास के कस्बे के स्कूल में दाखिला मिल गया। मीरा ने मेहनत नहीं छोड़ी और हर साल टॉप करती रही।
सालों बाद, वही मीरा जब पढ़ाई पूरी करके वापस अपने गाँव आई, तो वह एक स्कूल लेकर आई। अब गाँव के बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता था। वह कहती,
"जब सपनों में सच्चाई और मेहनत हो, तो रास्ता अपने आप बनता है।"
गाँव वालों के लिए वह अब सिर्फ मीरा नहीं, "मीरा मैडम" थी — एक प्रेरणा, एक उम्मीद।
सीख:
सपने चाहे जितने भी बड़े हों, अगर दिल में लगन हो और साथ में थोड़ी सी मदद मिले, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।
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